मध्यप्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में वन पुनर्स्थापना, जलवायु परिवर्तन और समुदाय-आधारित आजीविका जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला हो रही है। वन विभाग की इस कार्यशाला का मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने शुभारंभ किया।
कार्यक्रम में सीएम मोहन यादव बोले, हमने टाइगर रिजर्व बना दिए, सैंक्चुरी बना दी, अपने-अपने एरिया तय कर दिए। लेकिन जैसे ही ये एरिया तय हुए, सबसे पहले कहा गया, आबादियों को बाहर करो। यही इस पूरे संकट की जड़ है।
सरकार के नाते अगर फॉरेस्ट की बात करें, तो उसकी अपनी एक सीमा और भूमिका है। लेकिन जब हम उसे आजीविका से जोड़ने की बात करते हैं, तो मामला थोड़ा उलझ जाता है।
मैं खुद देखता हूं कि हमारे जनजातीय समुदाय जिन क्षेत्रों में जंगल हैं, वहां जंगल के साथ जीने की सालों पुरानी परंपरा रही है। जब हम शासन के माध्यम से इन क्षेत्रों का प्रबंधन करते हैं, तो यह विचार करना जरूरी हो जाता है कि हम उनके लिए मददगार साबित हो रहे हैं या उनके कष्ट बढ़ा रहे हैं। आज यह साफ दिखता है कि कई बार हम उनके कष्ट ही बढ़ा रहे हैं।
पहले प्राकृतिक चीजों को इस्तेमाल होता, अब हर जगह कचरा
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि यह कार्यशाला मुख्यतः तीन विषयों पर केंद्रित है।
उन्होंने कहा कि हमारी पारंपरिक जीवनशैली, विशेषकर जनजातीय समाज की, प्रकृति के साथ समरसता का आदर्श उदाहरण रही है। पहले विवाह जैसे अवसरों में पत्तलों जैसी प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग होता था, लेकिन अब सभ्यता का स्वरूप ऐसा हो गया है कि हर जगह गार्बेज ही गार्बेज है, चाहे गांव हो, ट्राइबल या नॉन-ट्राइबल, हम सब प्लास्टिक का उपयोग करते हैं। यह जीवनशैली का बड़ा बदलाव है।
जो समुदाय जंगलों और प्राकृतिक क्षेत्रों में रहते हैं, उनके अधिकारों की रक्षा और कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए काम करना होगा। "यह सिर्फ सरकार या एक वर्ग की जिम्मेदारी नहीं है। यदि शहर कार्बन एमिशन करेंगे, तो नेचर कोई उनके पाप धोने नहीं आएगा। सभी को मिलकर सोचना और जिम्मेदारी निभाना होगा।"
टेक्नोलॉजी और संरक्षण साथ चलें
भूपेंद्र यादव ने कहा कि डिजास्टर किसी को देखकर नहीं आता, इसलिए भारत ने "कोलिशन फॉर डिजास्टर रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर" की पहल की है। उन्होंने बताया कि चाहे कोई ट्राइबल हो या नॉन-ट्राइबल, आज सभी को मोबाइल, गाड़ी और डिजिटल एक्सेस चाहिए – यानी टेक्नोलॉजी सबके जीवन का हिस्सा बन चुकी है। इसीलिए सरकार इंडस्ट्रियल ट्रांजिशन को लेकर काम कर रही है, और ज्यादा कार्बन एमिट करने वाली इंडस्ट्रीज के लिए लीडरशिप फॉर इंडस्ट्रियल ट्रांसफॉर्मेशन अभियान चला रही है।
वनांचल में पलायन की स्थिति बनी
कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उईके ने कहा आज का विषय बहुत संवेदनशील और अंतर चेतना से जुड़ा हुआ विषय है। जन्म से लेकर मृत्यु तक सालों का हमारे जीवन से वनवासी समाज से जुड़ाव और संबंध है। वनवासी समाज की जो दिक्कत है परेशानियां हैं, और हमारी जो आरण्यक संस्कृति है उसके प्रति हमको बहुत गहराई से चिंतन मंथन करने की आवश्यकता है।
जनजाति क्षेत्र में वन औषधियां, इमरती लड़कियां, लेमन ग्रास, आम, जाम, इमली, सफेद मूसली समेत कई प्रकार के कंदमूल फल और अलग-अलग प्रकार के उत्पादन और भाजी मिलती है। लेकिन वर्तमान में जनजातीय क्षेत्र का दौरा करने पर पता चलाता कि अधिकांश वन औषधियां विलुप्त हो गई है- वनांचल में जो वनवासी समाज का वन आधारित जीवन था, वहां से धीरे-धीरे पलायन की स्थितियां बनी है।
भारतीय ज्ञान परंपरा दे सकती समाधान
इस विषय की संवेदनाओं से जुड़कर हमें आज दिखाई दे रहा है कि जितनी भी नदियां हैं, वे प्रदूषित हो चुकी हैं। हवा प्रदूषित हो रही है। दिल्ली में जिस तरह का प्रदूषण है, आकाश तक प्रभावित हो गया है। खेत जहरीले हो चुके हैं। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की बर्फ तेजी से पिघल रही है। समुद्र क्रोधित होते दिखाई दे रहे हैं। धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। कई वन्य जीव विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं। ऋतु चक्र अस्त-व्यस्त हो गया है।
ऐसे संकट के दौर में भारतीय ज्ञान परंपरा, वन और जनजातीय समाज एक-दूसरे पर आश्रित हैं और यही परंपराएं हमें समाधान की दिशा दिखा सकती हैं।
प्रशासन अकादमी में हो रही है दो दिवसीय कार्यशाला नरोन्हा प्रशासन अकादमी, भोपाल में आयोजित होने वाली कार्यशाला में विकसित भारत 2047 के लक्ष्यों में वनों की भूमिका पर मंथन होगा। कार्यक्रम में जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह, महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया, केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उईके, खरगोन सांसद गजेंद्र सिंह पटेल भी मौजूद रहें। इस अवसर पर जनजातीय समुदाय और प्राकृतिक संरक्षण पर केंद्रित ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति भी दी गई।
प्रमुख विषय : वन संरक्षण, पारंपरिक ज्ञान और सामुदायिक प्रबंधन राष्ट्रीय कार्यशाला के विभिन्न सत्रों में वन संरक्षण की वर्तमान कानूनी व्यवस्थाएं, उनकी सीमाएं और समाधान, जैव विविधता संशोधन अधिनियम-2023, सामुदायिक वन अधिकार, पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण और वन पुनर्स्थापन जैसे मुद्दों पर विस्तृत चर्चा होगी। बैंगलुरू से आ रहे प्रो. रमेश विशेषज्ञ वक्तव्य भी देंगे। कार्यशाला में डॉ. योगेश गोखले, डॉ. राजेन्द्र दहातोंडे आदि वक्ता विभिन्न सत्रों को संबोधित करेंगे।
राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन सत्र को राज्यपाल करेंगे संबोधित राज्यपाल मंगुभाई पटेल राष्ट्रीय कार्य शाला के समापन-सत्र में मुख्य अतिथि होंगे। पूर्व राष्ट्रीय जनजातीय आयोग अध्यक्ष हर्ष चौहान समापन वक्तव्य देंगे। कार्यशाला में वनीकरण, जलवायु संवेदनशीलता और वनवासी समुदायों की समावेशी भागीदारी पर केन्द्रित डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का भी प्रदर्शन किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण में वनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह कार्यशाला वनों, जैव विविधता, प्राकृतिक संसाधनों और जनजातीय आजीविका को केंद्र में रखते हुए एक सतत और न्यायसंगत विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।