इस फिल्म की कहानी बड़ी इंटरेस्टिंग है। 18 साल बाद रेवती फिल्म का डायरेक्शन कर रही हैं। ऑफकोर्स, उनकी बहुत बड़ी फैन हूं। मैंने उनकी पहली पिक्चर ‘फिर मिलेंगे’ देखी है। मुझे उस वक्त बहुत पसंद आई थी। मैंने सोचा था कि यह जब भी कोई फिल्म करेंगी, तब उनके साथ जरूर काम करना चाहूंगी। अब 18 साल बाद उनके साथ काम करने का चांस मिला। लेकिन यह सच है कि इसे पहली बार तो न कह दिया था, क्योंकि मां बनने के बाद ऐसे सब्जेक्ट वाली फिल्में ज्यादातर करती नहीं हूं। लेकिन स्क्रिप्ट सुनने और रेवती से मिलने के बाद मुझे पता चला कि यह बहुत ही अच्छी पिक्चर बनाएंगी और बहुत सेंसिटिव हैंडिल करेंगी।
आप ऐसी पिक्चर नहीं करना चाहतीं?
आपके बच्चों को एक खरोंच भी लग जाती है, तब इतना डर होता है कि हाय! मेरे बच्चे को खरोंच लग गई। हम टेंशन में आ जाते हैं। थोड़ा-सा बुखार होने पर डॉक्टर के पास भागते हैं। यहां पर तो बेचारे को बहुत कुछ हुआ है।
इस कैरेक्टर से लिए क्या वेंकटेश की मां से मिली हैं?
जी हां, इस कैरेक्टर की मुझ पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी। मैं सुजाता जी से मिली हूं। उनसे मिलने के बाद तो मुझे और लगा कि मेरे ऊपर इतनी बड़ी रिस्पांसबिलिटी है। इनको बहुत कैरेक्टरली प्रोट्रे करना है। इनका जो साधारण रूप है, उनकी जो सच्चाई है, उसे बड़े पर्दे पर उतारना है। इसे कर सकूंगी या नहीं कर सकूंगी, वह एक सवाल था। मेरा सबसे बड़ा एग्जाम यही होगा कि जब वो पिक्चर देखेंगी और बताएंगी कि कैसी है।