मैं 11 अगस्त को बकरियां चराने गया था। तब बेतवा नदी में पानी कम था।
पता ही नहीं चला और नदी में अचानक पानी बढ़ने लगा। देखते ही देखते चारों ओर
पानी ही पानी हो गया। मैं जहां बकरी चरा रहा था, वो जगह कुछ ऊंचाई पर थी।
टापू बन गई। मैं फंस गया। 6 बकरियां भी मेरे साथ फंस गईं। जब परिवार को ये
बात पता चली तो पत्नी सुमित्रा नदी किनारे पहुंची। नदी उफान पर थी। किनारे
से टापू की दूरी ज्यादा नहीं थी कि पानी के तेज बहाव और गहराई देखकर डर लग
रहा था। किसी की मुझ तक पहुंचने की हिम्मत नहीं हो रही थी। आखिर में पत्नी
घर से आटा लाई और उसे एक ट्यूब पर रख दिया। एक रस्सी ट्यूब में बांधी, उसी
रस्सी का दूसरा सिरा पत्थर से बांधा। उसने संकरे पाठ से (जहां नदी के
किनारों की दूरी कम लेकिन गहराई और बहाव ज्यादा है।) मेरी तरफ उस पत्थर को
फेंका। पत्थर टापू तक पहुंच गया था, मैंने रस्सी को खींच लिया। इसके बाद
पानी और चढ़ता गया। ये संकरे किनारे भी डूब गए और फिर मदद नहीं पहुंच पाई।
मेरे पास माचिस रहती है। आसपास से लकड़ियां तोड़कर उसी आटे को पकाया। रोज
थोड़ा-थोड़ा खाता रहा। पांच दिनों में ये भी खत्म हो गया। फिर दो दिन भूखा ही
रहा। बकरियों के लिए यहां चारा बहुत था। उनकी चिंता नहीं थी, लेकिन पता
नहीं कैसे पांच बकरियां इधर-उधर हो गईं। शायद नदी में बह गई हों रात में।
बस एक नंदिनी (बकरी) बची।रामसिंह ने बताया, हमेशा एक छाता और तिरपाल लेकर ही बकरियां चराने निकलता
था। उस दिन ये साथ ले गया। जब मैं टापू पर फंस गया तो पेड़ों से कुछ लकड़ियां
तोड़ीं। तिरपाल लगाकर एक झोपड़ी बना ली। यहीं, थककर बैठता था और रात गुजारता
था। सांप और दूसरे जहरीले कीड़ों का डर हमेशा रहता था। एक दिन एक सांप दिखा
भी था, पर वो अपने रास्ते निकल गया।
जब पानी और बढ़ने लगा, तो मुझे बाहर निकाला
पहले
घर वालों को उम्मीद थी कि नदी का पानी कम होने लगेगा, लेकिन जब पानी और
बढ़ने लगा तो परिवार के लोगों ने प्रशासन को खबर कर दी। प्रशासन की टीम ने
बुधवार को बोट पर बिठाया और गांव की ओर लेकर आए।
हर साल टापू पर फंसते हैं लोग
गांव
के ही रहने वाले उमाशंकर कुशवाहा ने बताया कि बेतवा नदी उनके गांव से लगी
हुई है। मछली पकड़ने वाले, भैंस या बकरी चराने वाले जब जाते हैं तो नदी का
जलस्तर बढ़ने से वो कई बार टापू पर फंस जाते हैं और 2-3 दिनों तक फंसे रहते
हैं। उन्हें ट्यूब की मदद से बाहर निकाल भी लेते हैं। इस बार बहाव तेज होने
के कारण रामसिंह सात दिन फंसे रहे।