मप्र में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के खिलाफ लगाई गई 52 ट्रांसफर पिटीशन पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इन याचिकाओं को एमपी हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया गया है। आज दोपहर बाद इन याचिकाओं पर सुनवाई होगी।
कमलनाथ सरकार ने 27% किया था ओबीसी आरक्षण कमलनाथ सरकार ने 2019 में ओबीसी वर्ग का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था। इसके बाद विधानसभा में इससे जुड़े विधेयक को पारित कर दिया गया। 2 सितंबर 2021 को सामान्य प्रशासन विभाग ने ओबीसी को भर्ती में 27 फीसदी आरक्षण देने का सर्कुलर जारी किया था। इसके खिलाफ यूथ फॉर इक्वेलिटी संगठन हाईकोर्ट गया। 4 अगस्त 2023 को हाईकोर्ट ने सरकार के सर्कुलर पर रोक लगा दी।
मामले से जुड़ी 70 याचिका सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट ने मार्च 2019 में ओबीसी के लिए बढ़ाए गए 13% आरक्षण पर रोक लगाई थी। इसी अंतरिम आदेश के तहत बाद में कई अन्य नियुक्तियों पर भी रोक लगा दी गई। संबंधित याचिका 2 सितंबर 2024 को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर हो गई। इसी तरह राज्य शासन ने ओबीसी आरक्षण से जुड़ी करीब 70 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करा ली हैं, जिन पर फैसला आना बाकी है।
भर्तियां रुकी तो आया 87:13 का फॉर्मूला हाईकोर्ट के आदेश के बाद एमपी में भर्तियों पर रोक लग गई थी। भर्तियां न होने से सरकार और राज्य लोक सेवा आयोग दबाव में थे। साल 2022 में सामान्य प्रशासन विभाग ने 87:13 फॉर्मूला बनाया और MPPSC को इसके आधार पर रिजल्ट जारी करने का सुझाव दिया।
कोर्ट ने भी इस फॉर्मूले को हरी झंडी दिखाई थी। इसमें वो 13% सीटें होल्ड की जाती हैं, जो कमलनाथ सरकार ने ओबीसी को देने का ऐलान किया था। ये सीटें तब तक होल्ड पर रखी जाएंगी, जब तक कि कोर्ट ओबीसी या अनारक्षित वर्ग के पक्ष में फैसला नहीं सुनाता।
जानिए, 13% पदों को होल्ड करने की वजह साल 2019 से पहले एमपी में सरकारी नौकरियों में OBC को 14%, ST को 20% और SC को 16% आरक्षण दिया जाता था। बाकी बचे 50% पद अन रिजर्व्ड कैटेगरी से भरे जाते थे। यानी आरक्षण की सीमा 50% थी। 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया। इससे आरक्षण की सीमा बढ़कर 63 फीसदी हो गई।
आरक्षण की बढ़ाई गई इस सीमा को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने 20 जनवरी 2020 को 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगा दी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भर्तियों में ओबीसी को पहले की तरह 14 फीसदी आरक्षण दिया जाए।
हाईकोर्ट ने ये आदेश 1992 में सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार के फैसले को आधार बनाकर दिया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी राज्य में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती। इस फैसले के बाद एमपी सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने को लेकर याचिका लगाई।
इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रांसफर याचिका पर जब तक सुप्रीम कोर्ट अपना रुख साफ नहीं करता, तब तक हाईकोर्ट भी सुनवाई नहीं करेगा। तब से लेकर अब तक मामले में 85 से ज्यादा याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। सभी मामले विचाराधीन हैं।