किर्गिस्तान में बर्ड हंटिंग फेस्टिवल 'सालबुरुन' मनाया गया। यह बिश्केक शहर से 30 किमी दूर चंकुरचक पठार में आयोजित किया गया। इसमें 15 से ज्यादा देशों के ईगल हंटर्स ने हिस्सा लिया। इसमें शामिल होने वाले लोग अपने उस चील या बाज को लेकर पहुंचते हैं, जिसे उन्होंने शिकार की ट्रेनिंग दी हो।
इस फेस्टिवल का आयोजन हर साल होता है। इस साल इसमें किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्की, मलेशिया, सिंगापुर, मंगोलिया, रूस, हंगरी, अमेरिका, जर्मनी, चेक गणराज्य, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और इंडोनेशिया समेत मध्य एशिया के बर्ड हंटर्स ने हिस्सा लिया। यह परिंदे इंसानों के साथ इतने घुले-मिले होते हैं कि अनजान लोगों के कंधे या हाथ पर आकर बैठ जाते हैं। इस उत्सव में भाग लेने वाले बारी-बारी से अपने गोल्डन ईगल को लोमड़ी या फिर खरगोश का शिकार करने के लिए छोड़ देते हैं।
1200 साल पहले हुई फेस्टिवल की शुरुआत
किर्गिस्तान
में लोमड़ी और जंगली कुत्ते ग्रामीणों के घोड़ों, बकरी और भेड़ आदि
मवेशियों का शिकार कर लेते थे। इससे ग्रामीण काफी परेशान होते थे। मवेशियों
की मौत का बदला लेने के लिए 9वीं सदी में लोगों ने परिंदों को शिकार करना
सिखाया। इसी के साथ इस उत्सव की शुरुआत हुई। बाद में इसमें भाग लेने के लिए
विदेश से भी लोग आने लगे।