नई दिल्ली: अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर डोनाल्ड ट्रंप की वापसी से भारत के सैटेलाइट कम्युनिकेशन सेक्टर में बड़ी हलचल देखने को मिल सकती है। जानकारों का कहना है कि ट्रंप की जीत से एलन मस्क की स्टारलिंक और जेफ बेजोस की ऐमजॉन कुइपर को भारत के सैटकॉम सेक्टर में बैकडोर से एंट्री मिल सकती है। मस्क लंबे समय से भारत में एंट्री करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें अब तक इसके लिए लाइसेंस नहीं मिल पाया है। मस्क की ट्रंप से करीबी किसी से छिपी नहीं है। राष्ट्रपति चुनावों में उन्होंने ट्रंप की रैलियों में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था और उन्हें जमकर चुनावी चंदा भी दिया था। इसका फायदा उन्हीं आने वाले दिनों में दिख सकता है।
केंद्र सरकार नीलामी के बिना सैटकॉम एयरवेव आवंटित करना चाहती है। स्टारलिंक और ऐमजॉन ने उसके इस रुख का समर्थन किया है। दूसरी ओर भारत की शीर्ष दूरसंचार कंपनियों रिलायंस जियो और भारती एयरटेल इसके पक्ष में नहीं हैं। जानकारों का कहना है कि अब जियो और एयरटेल के लिए सरकार को मनाना आसान नहीं होगा। ट्रंप की जीत के एक दिन बाद कम्युनिकेशंस मिनिस्टर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी इस बात को दोहराया कि सैटेलाइट एयरवेव की नीलामी नहीं की जाएगी, बल्कि इसका प्रशासनिक रूप से आवंटन किया जाएगा। हालांकि इसकी कॉस्ट टेलिकॉम रेगुलेटर तय करेगा।
किस बात पर है रार
टेलिकॉम इंडस्ट्री के एक शीर्ष सलाहकार ने ईटी को बताया कि मस्क और ट्रंप के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। यह भी सच्चाई है कि स्टारलिंक और ऐमजॉन भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन के पक्ष में हैं। पूरी दुनिया में यही ट्रेंड है। ऐसे में आने वाले दिनों में स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए सरकार पर दबाव बनाने में जियो और भारती के लिए चुनौतियां और भी बड़ी हो जाएंगी। इसकी वजह यह है कि सरकार भी ग्लोबल ट्रेंड के मुताबिक चलना चाहती है।अभी सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के आवंटन के तरीके और ब्रॉडबैंड-फ्रॉम-स्पेस सर्विसेज को सपोर्ट करने के लिए इसकी प्राइसिंग को लेकर जियो और एयरटेल तथा स्टारलिंक और ऐमजॉन के बीच जबरदस्त होड़ चल रही है। टेलिकॉम और सैटकॉम सर्विसेज के समान व्यवहार की वकालत करते हुए जियो और एयरटेल ने ट्राई से कहा है कि शहरी या रिटेल ग्राहकों की सर्विस के लिए केवल नीलाम किए गए सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का उपयोग किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि स्टारलिंक, ऐमजॉन और अन्य वैश्विक सैटेलाइट ऑपरेटर शहरी क्षेत्रों में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं देना चाहते हैं और उनका सीधा मुकाबला स्थानीय टेलीकॉम करने के साथ है।
लेवल प्लेइंग फील्ड
हालांकि भारतीय टेलिकॉम कंपनियां का कहना है कि उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों या मस्क की ट्रंप से नजदीकी से कोई फर्क नहीं पड़ता है। उन्हें भरोसा है कि सरकार निष्पक्ष सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन और मूल्य निर्धारण नीति को अंतिम रूप देगी जो टेलिकॉम और सैटकॉम कंपनियों के बीच एक लेवल प्लेइंग फील्ड सुनिश्चित करेग।
एक बड़ी टेलिकॉम कंपनी के अधिकारी ने कहा कि चाहे व्हाइट हाउस में कोई भी आए, अगर भारत सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी करने का फैसला करता है, तो कोई भी विदेशी सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अब गेंद भारत सरकार के पाले में है। अभी केवल भारती ग्रुप के सपोर्ट वाले यूटेलसैट वनवेब और जियो-एसईएस गठबंधन के पास भारत में सैटकॉम सर्विसेज शुरू करने के लिए लाइसेंस है। स्टारलिंक और ऐमजॉन कुइपर का आवेदन सरकार के पास लंबित हैं। अमेरिका की कंपनी ग्लोबलस्टार भी भारत में अपनी सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विसेज का विस्तार करने के लिए उत्सुक है।
भारत की संभावनाएं
भारत में स्पेस सेक्टर के रेगलेटर IN-SPACe का अनुमान है कि देश की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2033 तक 44 अरब डॉलर तक पहुंचने की क्षमता रखती है। अभी इस सेक्टर में ग्लोबल लेवल पर भारत की हिस्सेदारी केवल 2% है जो 2033 तक 8% पहुंच सकती है। भारत में अभी सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विसेज शुरू नहीं हो पाई है क्योंकि सरकार अब तक प्राइसिंग के नियम और स्पेक्ट्रम आवंटन के तरीके पर फैसला नहीं ले पाई है। ट्राई की सिफारिशों के बाद ही इस पर बात आगे बढ़ सकती है।