भटोदिया गांव गुना जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर बसा है। यहां की आबादी करीब 600 है। गांव के एक-दो घर छोड़ दें तो सभी घर कच्चे थे। भटोदिया के किसान 2014 से पहले पारंपरिक खेती करते थे। गेहूं, सोयाबीन, चना आदि फसलें ही उगाते थे। लागत और आमदनी के बीच का अंतर लगातार कम हो रहा था। ऐसे में गांव के किसान विकल्प की तलाश कर रहे थे। 2014 में यहां के रहने वाले बनवारी लोधा ने पारंपरिक खेती छोड़ने का मन बनाया। यहां से बदलाव की शुरूआत हो गई। आज गांव में 90 प्रतिशत घर पक्के बन चुके हैं।
बनवारी लोधा ने छोटे भाई नवजीवन लोधा को शिवपुरी के किसान के पास सब्जी की खेती की ट्रेनिंग लेने भेजा। दो से तीन महीने की ट्रेनिंग के बाद नवजीवन गांव लौटे। बड़े भाई बनवारी लोधा के साथ मिलकर 3 बीघा जमीन में सब्जी उगा दी। पहली ही बार में अच्छा मुनाफा हुआ तो बाकी जमीन में भी सब्जियां उगाने लगे। गांव में 90 परिवार हैं। सब्जी से अच्छी आमदनी होती देख करीब 75 किसान परिवार सब्जियों की खेती करने लगे हैं।
वर्तमान में प्रदेश के कई जिलों में इसी गांव की सब्जियां पहुंचती हैं। पारंपरिक खेती को छोड़ गांव के सभी किसान अब सब्जियां ही उगा रहे हैं। केवल खाने के लिए गेहूं की खेती की जाती है, बाकी जमीन पर अब सब्जियों की पैदावार की जा रही है। आज यह गांव रोजाना डेढ़ से दो लाख रुपए की सब्जी मंडी में भेजता है।
आइए जानते हैं बनवारी लोधा से पूरी कहानी...
2014
में मेरे छोटे भाई रामजीवन लोधा ने शिवपुरी के एक किसान के यहां जाकर
सब्जियां उगाने की ट्रेनिंग ली। वहां से लौटकर गिलकी और करेले की बोवनी की।
3 बीघा में लगभग 80 हजार रुपए की लागत आई। 80 से 90 दिन में फसल तैयार हो
गई। उपज बेचने पर 2 लाख रुपए का मुनाफा हुआ। यहीं से सब्जियां उगाने के
सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी है। पिछले वर्ष ढाई बीघा खेत में टिंडे
लगाए। खेत तैयार करने से लेकर बोवनी और उसके रख-रखाव में 65 हजार रुपए की
लागत आई थी।
45 से 55 दिन में टिंडे तैयार हो गए। बाजार में बेचने पर 12.50 लाख रुपए की इनकम हुई। यह अब तक कि सबसे ज्यादा इनकम थी। अब हम दोनों भाई 9 बीघा में सब्जियां ही उगा रहे हैं। पौधे भी खुद ही तैयार करते हैं। करेला, खीरा, टमाटर, मिर्ची आदि सब्जियां उगा रहे हैं। आज हमारी आर्थिक स्थिति काफी बेहतर हो चुकी है। अब रोजाना की जरूरतों को आसानी से पूरा कर ले रहे हैं। साथ ही अच्छी इनकम होने से अपने शौक भी पूरे कर लेते हैं। हमारी खेती देखकर गांव के दूसरे किसान भी प्रभावित हुए और अब गांव के 90 फीसदी किसान पारंपरिक खेती छोड़ चुके हैं। बस अपने उपयोग के लिए गेहूं की खेती करते हैं। इसके अलावा सब्जियां उगाकर शहर की मंडियों में भेजते हैं। इससे सभी किसानों को मुनाफा बढ़ा है।
राजस्थान तक जा रहा करेला
इसी गांव में रहने वाले एक अन्य किसान सुल्तान सिंह यादव कहते हैं कि रामजीवन से प्रेरणा लेकर सब्जियां उगानी शुरू की। आज वह अपने 5 बीघा खेत में करेला, गिलकी, लौकी, खीरा, बैगन, टमाटर उगा रहे हैं। जब भास्कर की टीम उनके पास पहुंची, तब वे अपने खेत का खीरा मंडी में भेजने की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने बताया कि ग्वालियर की गाड़ी खड़ी है। यह पूरा खीर ग्वालियर जाएगा। इसके अलावा राजस्थान के छबड़ा जिले सहित शिवपुरी, अशोकनगर और कई जिलों में इस गांव की सब्जियां पहुंचती हैं।
शुरुआत में केवल बनवारी लोधा का परिवार ही सब्जियां उगाता था। उनके मुनाफे को देखते हुए धीरे-धीरे गांव के बाकी किसान भी अपने खेतों में सब्जियां उगाने लगे हैं। जिले में इस गांव को सब्जियों वाला गांव कहा जाने लगा है। जिले के हर घर में भटोदिया गांव में उगी हुई सब्जियां पहुंच रही हैं।