तुलसी-अश्वगंधा की कमाई से ‎किसान हो रहे मालामाल

Updated on 23-10-2020 11:44 PM

भोपाल। प्रदेश के सीहोरजिले केकिसान तुलसी-अश्वगंधा की कमाई से मालामाल हो रहे हैं।जिले के एक समूह की दीदियों ने औषधीय खेती कर खेती को लाभ का धंधा बना दिया। समूह की महिलाओं ने तुलसी की 90 दिन में प्रति एकड़ 38 हजार 500 रुपये कमाए, वहीं अब अगली फसल अश्वगंधा बोवने की तैयारी चल रही है, जो प्रति एकड़ 50 हजार तक प्रति एकड़ मुनाफा दिलाएगा। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के संचालक दिनेश बर्फा ने बताया कि कोरोना महामारी में समूह की महिलाओं ने आपदा में अवसर तलाशे हैं। कोरोना महामारी सोयाबीन फसल में आई प्राकृतिक आपदा को देखते हुए जिले के महिला-पुरुष कृषको द्वारा पारंपरिक सोयाबीन की खेती को छोड़कर तुलसी अश्वगंधा की खेती पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। विकासखंड इछावर की स्व सहायता समूह की दीदी अनीता बाई द्वारा अपने लगभग 2 एकड़ खेत में तुलसी की खेती कर सभी को चौंका दिया। प्रधानमंत्री मोदी का संकल्प आत्म निर्भर भारत बनाने में इन स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा औषधीय खेती कर आत्मनिर्भर भारत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है। आईटीसी चौपाल सागर औषधीय पौधों के कृषि विशेषज्ञ नागेंद्र मिश्रा के अनुसार तुलसी की फसल 90 दिन की अवधि की खेती होती है और सूखे के प्रति सहनशील होती है। तुलसी से प्रति एकड़ 350 किलोग्राम की उपज प्राप्त होती है। प्रति एकड़ लागत लगभग 9 से 10 हजार तक होती है। तुलसी का बाजार मूल्य लगभग 110 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेच कर कुल 38500 रुपये प्रति एकड़ तक कमाया जा सकता है। कृषकों द्वारा उत्पादित औषधीय उत्पादको को चौपाल सागर आईटीसी सीहोर पर विक्रय कर सकते हैं। अब इस रबी के सीजन मे भी स्व सहायता समूह की महिलाएं औषधीय अश्वगंधा की खेती की तैयारी मे लगी हुई है। अश्वगंधा का बाजार मूल्य 200 रुपये किलो है, जिसमें प्रति एकड़ 50 हजार रुपये तक का लाभ कमाया जा सकता है। वहीं बाजार में तुलसी, अश्वगंधा, गिलोय, एलोवेरा की मांग के साथ ही समूह का मुनाफ बढ़ रहा है।सीहोर जिले में राज्य ग्रामीण आजीविका मिषन से जुड़ी महिलाओं को आईटीसी चैपाल सागर के द्वारा औषधीय पौधों के कृषिकरण, उपार्जन एवं विक्रय संबंधित प्रक्रियाओं के लिए प्रशिक्षण क्षेत्र भ्रमण कराया गया है। जहां पर महिलाओ ने तुलसी की खेती करने और उससे होने वाले लाभ को जाना। एक समय था जब समूह टूट जाया करते थे, लेकिन यह समूह उन्नत खेती कर अब असल आजीविका का स्त्रोत बन गए हैं। पहले तुलसी की खेती कर अब अश्वागंधा की बोवनी की तैयारी में समूह की महिलाएं खेतों को तैयार करने में जुटी हुई हैं।


 


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