प्री-पैक्ड (पैक किए गए) और लेबल वाले खाद्य पदार्थों पर पांच फीसदी माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लगाने से खाद्यान्न व्यापारियों को नुकसान होगा। इससे अनुपालन बोझ बढ़ेगा और रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाला जरूरी सामान और महंगा हो जाएगा। कारोबारी संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने सोमवार को यह बातें कही।
कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने यहां आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि पैक अथवा लेबल युक्त सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों और कुछ अन्य वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने की काउंसिल की सिफारिश पर देश के खाद्यान्न व्यापारियों में बेहद रोष तथा आक्रोश है। कारोबारी नेता ने जीएसटी परिषद के इस कदम को छोटे निर्माताओं एवं व्यापारियों के हितों के खिलाफ करार दिया है। उन्होंने कहा कि इस फैसले से ब्रांडेड सामान को फायदा पहुंचेगा।
खंडेलवाल ने कहा कि कारोबारी संगठन केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों से मिलकर इस फैसले पर फिर से विचार करने और वापस लेने को कहेगा।
दरअसल जीएसटी परिषद ने पिछले हफ्ते चंडीगढ़ में आयोजित दो दिवसीय 47वीं बैठक में प्री-पैक्ड (डिब्बा या पैकेट बंद) और लेबल युक्त (फ्रोजन को छोड़कर) दही, पनीर, लस्सी, शहद, सूखा मखाना, सूखा सोयाबीन, मटर, मछली जैसे उत्पाद, गेहूं और अन्य अनाज तथा मुरमुरे पर 5 फीसदी जीएसटी दर लगाने का फैसला किया था। यह दर 18 जुलाई से लागू हो जाएंगे।
कैट महामंत्री ने कहा कि इन सभी वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने की सिफारिश पर देश के खाद्यान्न व्यापारियों में आक्रोश है। उन्होंने जीएसटी परिषद के इस कदम को छोटे निर्माताओं एवं व्यापारियों के हितों के खिलाफ करार दिया। उन्होंने कहा कि इससे जरूरी सामान की कीमत पर बड़े ब्रांड का कारोबार बढ़ेगा, क्योंकि अब तक ब्रांडेड नहीं होने पर विशेष खाद्य पदार्थों, अनाज आदि को जीएसटी से पहले छूट मिली हुई थी। लेकिन, इस निर्णय के बाद प्री-पैक, प्री-लेबल दही, लस्सी और बटर मिल्क सहित प्री-पैकेज्ड और प्री-लेबल खुदरा पैक पर भी अब जीएसटी लगेगा, जिससे देशभर में 6500 से ज्यादा अनाज मंडियों में खाद्यान्न व्यापारियों के व्यापार में बड़ा अवरोध आएगा।
खंडलवाल ने कहा कि इस विषय को लेकर कैट के नेतृत्व में अनाज व्यापारी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के अध्यक्ष विवेक जौहरी से मिलेगा और इस निर्णय पर पुन: विचार करने का आग्रह करेगा। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से जीएसटी कर संग्रह में वृद्धि होनी चाहिए। लेकिन, आम लोगों की जरूरत की वस्तुओं को टैक्स स्लैब के दायरे में लाने की बजाय कर इसका दायरा बड़ा करना चाहिए। इसके लिए जो लोग अभी तक जीएसटी टैक्स के दायरे में नहीं आए हैं, नको इसके दायरे में लाया जाए, जिससे केंद्र और राज्य सरकारों का राजस्व बढ़ेगा।
इस अवसर पर उपस्थित राजधानी दिल्ली खाद्यान्न व्यापार संघ के अध्यक्ष नरेश गुप्ता और दाल मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप जिंदल ने बताया कि इस संबंध में देशभर के अनाज व्यवसाय संगठनों से भी लगातार संपर्क किया जा रहा है। क्योंकि सभी संगठन जीएसटी परिषद के इस निर्णय से बेहद नाराज हैं। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों में राज्य स्तर के खाद्यान तथा अन्य वस्तुओं के व्यापारियों का सम्मेलन भी इसी हफ्ते उनके राज्यों में होगा। इसके बाद राजधानी दिल्ली में एक राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया जाएगा, जिसमें खाद्यान्न से जुड़े देश भर के व्यापारी नेता भाग लेंगे।