क्या है कहानी: फिल्म की शुरुआत होती है, जहां सजी धजी
बेहद खूबसूत अंदाज में राजश्री त्रिवेदी (हुमा कुरैशी) मौजूद है और शिखर
धवन उनके साथ डांस करने के लिए पूछते हैं। डांस शुरू होता है और तभी जोर
जोर से मां की आवाज आती है, फिर समझ आता है कि ये तो सपना था। जब आंख खुलती
है तो मां की डांट के साथ याद आता है कि राजश्री तो अब भी अपने बड़े से
सपने के साथ मेरठ में ही है। मां को राजश्री की शादी की चिंता है, और उस ही
बात पर हमेशा खिटपिट होती है। वहीं पिता और दादी, राजश्री के पक्ष में
रहते हैं और चाहते हैं कि उसके सपने को पंख मिल जाए। राजश्री, स्पोर्ट्स
प्रेजेंटर बनना चाहती है। इसके बाद कहानी में एंट्री होती है सायरा खन्ना
(सोनाक्षी सिन्हा) की, जो अपना फैशन लेबल खोलना चाहती है और लंदन जाकर शूट
करना होता है। लेकिन आखिर वक्त पर बॉयफ्रेंड से धोखा मिलता है और सपना
टूटने से लगता है। वहीं दूसरी ओर राजश्री को भी उनके लुक्स (मोटा दिखना) की
वजह से चैनल बिना इंटरव्यू के ही बाहर का रास्ता दिखा देता है। बाथरूम में
राजश्री और सायरा रोती हैं और फिर मिलता है दोनों को एक दूजे का साथ।
राजश्री स्पोर्ट्स चैनल के मालिक को सबक सिखाना चाहती है और सायरा अपने
फैशन लेबल का शूट करना, दोनों की मंजिल है लंदन। लंदन में जाकर क्या होता
है, क्या फैशन लेबल बनता है..., क्या राजश्री स्पोर्ट्स चैनल के मालिक को
सबक सिखाती है..., और कैसे दोनों के हिस्से का पास्ट और लव स्टोरी आती
है
क्या कुछ है खास: फिल्म की शुरुआत में राजश्री, उसकी मां,
दादी और पिता के बीच के डायलॉग्स काफी बेहतरीन है और करीब करीब हर घर की
कहानी दिखती है। जहां कोई पक्ष में है तो कोई उस काम के खिलाफ, लेकिन प्यार
मौजूद है। वहीं इस बीच सास-बहू की नोंक-झोंक भी प्यारी दिखती है। इसके बाद
फिल्म आगे बढ़ती है और अच्छी चीजें कम होती जाती हैं। फिल्म के कुछ हिस्से
में बॉडी शेमिंग को लेकर जो बातें कही गई हैं, वो बहुत सटीक बैठती है।
जिसका एक हिस्सा ये भी है कि कई बार अपनी किसी कमी को छिपाने के लिए दूसरी
चीजों को हाइलाइट किया जाता है, जैसे मोटापा छिपाने के लिए बालों का अतरंगी
कलर करना, बड़े बड़े टैटू आदि। फिल्म में शिखर धवन ही नहीं बल्कि कपिल देव
का भी कैमियो है। फिल्म का आखिरी हिस्सा भी लाइफ को लेकर पॉजिटिव रहने का
सबक देता है।
कैसी है एक्टिंग और निर्देशन: फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा
का काम कन्विंसिंग नहीं लगता है। कई सीन्स में तेज बोलने पर सोनाक्षी की
आवाज कानों को चुभती सी है। वहीं दूसरी ओर कई फिल्मों में बेहतरीन अदाकारी
कर चुकीं हुमा भी इस बार फीकी दिखी हैं। इन दोनों के अलावा जहीर इकबाल का
काम कुछ सीन्स में काफी प्यारा दिखता है, फुल एनर्जी वाला, लेकिन कई बार
यही एनर्जी निगेटिव सी दिखती है। इन सभी के बीच में जिस एक्टर ने सबसे
प्यारा काम किया है, वो महत राघवेंद्र है। महत राघवेंद्र का किरदार ऐसा है,
जो धीरे धीरे आखिर तक आपका पसंदीदा बन जाता है। वहीं उन्होंने इसे बड़ी ही
खूबसूरती से निभाया भी है। बात निर्देशन की करें तो कई सीन्स एक दूसरे से
कनेक्टिड नहीं है, एडिटिंग में भी फिल्म पर मेहनत नहीं दिखती है, चाहें बात
लिप सिंक की हो या फिर लंबे सीन्स की। म्यूजिक और कैमरा वर्क भी फिल्म को
आगे ले जाने में मदद नहीं करता है। कुल मिलाकर सिर्फ एक्टिंग ही नहीं बल्कि
निर्देशन में भी फिल्म कमजोर साबित होती है।
कहां खाई मात: फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी लेखनी
है। फिल्म को कागज पर ही लिखते वक्त मेहनत नहीं दिखती है, जिसका खामियाजा
पूरी फिल्म पर दिखता है। फिल्म में कई डायलॉग्स और सीन्स ऐसे हैं, जिनका
कोई तुक नहीं बनता है। बतौर ऑडियंस भी आप खुद को उससे कनेक्ट नहीं कर पाते
हैं। फिल्म को बॉडी शेमिंग के मुद्दे पर प्रमोशन किया जा रहा था, लेकिन ये
तो फिल्म का एक जरा सा हिस्सा दिखता है, जो फिल्म देखकर बाद में जरूरी सा
भी नहीं लगता है। फिल्म का बैक ग्राउंड म्यूजिक, एडिटिंग, सिनेमैटोग्राफी
और डायरेक्शन भी कमजोर है।