चीन अपनी भाषा मंदारिन के जरिये कई देशों के शिक्षा संस्थानों में घुसपैठ कर चुका है। ड्रैगन का ये दांव दुनिया भर में अपनी संस्कृति को बढ़ा कर प्रभावशाली बनना है। मंदारिन को विश्व में 112 करोड़ लोग बोलते हैं। मंदारिन को पहली भाषा (फर्स्ट लैंग्वेज) के तौर पर 83.1% लोग बोलते हैं। जबकि अंग्रेजी को सिर्फ 28.6% लोग पहली भाषा के तौर पर बोलते हैं। 2004 में मंदारिन सिखाने वाले कन्फ्यूशियस संस्थान 50 से अब 525 हो गए हैं।
यहां 90 लाख से अधिक विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। 2005 में ब्रिटेन के 8% स्कूलों में मंदारिन पढ़ाई जाती थी। अब करीब 70 स्कूलों के 6,000 छात्रों को ये पढ़ाई जा रही है। इन संस्थानों के लिए चीन सरकार 80 हजार करोड़ का फंड देती है। ब्रिटिश पीएम पद के उम्मीदवार ऋषि सुनक ने ये मुद्दा उठाते हुए कहा था कि चीन ने ब्रिटेन की शिक्षा व्यवस्था में घुसपैठ है। यदि वे पीएम बने तो ब्रिटेन के सभी चीनी संस्थानों को बंद करवा देंगे।
ब्रिटेन की अलग-अलग यूनिवर्सिटी में मंदारिन सिखाने वाले 30 संस्थान हैं। जानकारों का कहना है कि चीन खुद को ‘सॉफ्ट पॉवर’ के रूप में बढ़ा रहा है। आधुनिक चीनी इतिहास और राजनीति के प्रो. राणा मित्तर ने बताया कि ब्रिटेन को राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यापार को समझने के लिए मंदारिन भाषियों की जरूरत है।
साल 2016 में ब्रिटिश सरकार ने अपने यहां के सभी माध्यमिक स्कूलों में मंदारिन एक्सीलेंस प्रोग्राम लांच किया था। इसका उद्देश्य था कि साल 2020 तक ब्रिटेन के बच्चे धाराप्रवाह मंदारिन बोल सकें। इसके लिए करीब 96 करोड़ रुपए खर्च किए गए। ब्रिटेन में कन्फ्यूशियस संस्थानों के आलोचकों का कहना है ये महज प्रचार का एक माध्यम हैं। ये ब्रिटेन के युवाओं की सोचने और बोलने की आजादी पर काबू पाना चाह रहे हैं।