चरखा-चरखा करते थे सब, जब जरूरत पड़ी मशाल की, आजादी के नायक थे तुम, कैसे खलनायक जीत गए। कवि सम्मेलन के दौरान ये पंक्तियां पढ़ने वाले देवास के कवि देवकृष्ण व्यास ने माफी मांग ली है। गुजरात की सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी में आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर अखंड काव्य महाकुंभ-2022 में व्यास ने कुछ ऐसी पंक्तियां पढ़ीं, जिस पर विवाद हो रहा था। लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे थे।
देव कृष्ण व्यास वीर रस के कवि हैं। रिटायर्ड शिक्षक हैं। 70 साल के व्यास 1971 से कविता पाठ कर रहे हैं। साल 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने उन्हें सम्मानित भी किया था। वर्तमान में कविता पाठ के साथ-साथ वे शिक्षक संघ के संगठन मंत्री भी हैं।
विवादित कविता का पाठ करने वाले कवि देवकृष्ण व्यास से बात की। उनसे जानना चाहा कि आजादी की लड़ाई में चरखा और मशाल का क्या मतलब है। पढ़िए, इंटरव्यू के प्रमुख अंश...
आपकी कविता को लेकर विवाद हो रहा है। इस पर आप क्या कहे
ऐसा मुझे नहीं लगता। 31 जुलाई 2022 को सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के सभाकक्ष में मैंने इस कविता का पाठ किया था। उस दिन सभी लोगों ने मेरी पंक्तियों को काफी सराहा था। पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। अब बाद में उन्हें मेरे किस बोल और पंक्ति से आपत्ति हो गई, ये मैं नहीं जानता।
चरखा और मशाल का क्या मतलब है?
आजादी के दौरान दो दल काम कर रहे थे। पहला नरम दल और दूसरा गरम दल। नरम दल
जिसे मैंने कविता में चरखे से दर्शाया। गर्म दल को मशाल के रूप में
दर्शाया है।
आपको क्या लगता है, आजादी किसने दिलाई चरखे ने या फिर मशाल ने?
इसमें
कोई दो राय नहीं है। आजादी दोनों के साझे प्रयास से मिली है। ये कहना कि
आजादी किसी एक पक्ष ने दिलाई, ये बिल्कुल गलत होगा। ऐसा नहीं है। दोनों
पक्षों के कारण आजादी मिली है।
चरखा-चरखा करते थे सब’ इससे आपका तात्पर्य
इसका मतलब है कि आजादी के बाद देश में चरखे की आजादी को ज्यादा सम्मान मिला। कहीं न कहीं क्रांतिकारियों को वो सम्मान नहीं मिल पाया, जो उन्हें मिलना चाहिए था। दोनों पक्षों को एक जैसा सम्मान मिलना था।