रक्षा बंधन और 15 अगस्त के मौके पर दो बड़ी फिल्में- ‘रक्षा बंधन’ और ‘लाल सिंह चड्ढा’ रिलीज हो रही हैं। यहां ‘रक्षा बंधन’ फिल्म के रिव्यू पर बात करने से पहले बता दें कि सालों बाद किसी फिल्म का भव्य प्रीमियर रखा गया। थिएटर को फूलों से सजाने के साथ चाट, कुल्फी, गोलगप्पा, चाय-पान आदि का स्टॉल लगाकर शादी-विवाह और मार्केट का माहौल बनाने की सफल कोशिश की गई।
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म की कहानी के बारे में बात करें, तब लाला केदारनाथ (अक्षय कुमार) दिल्ली स्थित चांदनी चौक में गोलगप्पे की पुश्तैनी दुकान चलाता है। मान्यता है कि गर्भवती महिलाएं उसकी दुकान पर गोलगप्पे खाती हैं, तब लड़का पैदा होता है। इसके चलते गोलगप्पे खाने के लिए महिलाओं की लाइन लगती है।
लाला केदारनाथ की चार बहने हैं, जो शादी योग्य हो चली हैं। जीवन के अंतिम समय में मां केदारनाथ से वचन लेती है कि वह बहनों के हाथ पीले करने के बाद ही घोड़ी चढ़ेगा। केदारनाथ मां को दिए वचन पूरा करने में लगा होता है, लेकिन मुश्किलें तब खड़ी हो जाती हैं, जब चार बहनों की शादी में लाखों की दहेज देने की समस्या सामने आती है।
दूसरी तरफ सपना (भूमि पेडनेकर) बचपन से केदारनाथ को प्यार करती है। सपना के पिता (नीरज सूद) को बेटी की बढ़ती उम्र के साथ उसकी शादी चिंता सताती है। वह बार-बार पहले बेटी की शादी के लिए केदारनाथ पर दबाव डालता है, पर केदारनाथ मां को दिए वचन के मुताबिक सपना और उसके पिता से मोहलत मांगता रहता है।
खैर, केदारनाथ जैसे-तैसे दहेज के लिए दुकान गिरवी रखकर बहन गायत्री (सादिया खतीब) की शादी करवाता है। बाकी बहनों की शादी में दहेज देने के लिए अपनी एक किडनी बेचकर रक्षाबंधन के दिन हॉस्पिटल से घर लौटता है, तब उसे खबर मिलती है कि दहेज से प्रताड़ित होकर गायत्री ने खुदकुशी कर ली।
अब आगे बहनों की शादी का क्या होगा? लाला केदारनाथ घोड़ी चढ़ पाएगा या नहीं, रक्षाबंधन और दहेज कुप्रथा पर क्या होगा? यह सब जानने के लिए थिएटर जाना होगा।
दमदार एक्टिंग
फिल्म की कहानी की शुरुआत में हाजिर जवाबी के साथ चुटीले संवाद गुदगुदाते-हंसाते और इमोशनल करते हैं। मंझे कलाकार अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर की अदाकारी हो या संवाद अदायगी मनोरंजक लगती है। सपना के पिता के रोल में नीरज सूद भी खूब जंचते हैं।
मैच मेकर के रोल में सीमा पाहवा का स्क्रीन प्रेजेंस अच्छा है। वहीं बहनों के रोल में न्यू कमर्स शाहजमीन कौर, दीपिका खन्ना, स्मृति श्रीकांत, सादिया खतीब आदि का अभिनय ठीक-ठाक रहा।
फिल्म के मजबूत पहलू की बात करें, तो भाई-बहन के प्यार और दहेज कुप्रथा का अच्छा मुद्दा उठाया गया है। ओवरऑल यह फिल्म हंसाती- गुदगुदाती और रुलाती भी है। वहीं कमजोर पहलू की बात करें, तो कहानी कुछ मोड़ पर निराश भी करती है।
सबसे ज्यादा डिसअपॉइंटमेंट वहां होता है, जब केदारनाथ की सबसे प्यारी-दुलारी, समझदार बहन गायत्री दहेज से प्रताड़ित होकर खुदकुशी कर लेती है और उसकी पड़ोसन चीख-चीखकर भाई और पुलिसवालों के सामने बताती भी है कि गायत्री को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, लेकिन इसके बावजूद ससुराल पर न तो पुलिस कोई एक्शन लेती है और न ही भाई कोई सबक सिखाता है।
गले से बात यह भी नहीं उतरती कि किडनी निकाल कर लौटा केदारनाथ दर्द के मारे रिक्शेवाले से ठीक चलाने के लिए कहता है और दोस्त का सहारा लेकर घर पहुंचता है, पर बहन की बुरी खबर पाकर उसका दर्द छू-मंतर हो जाता है और वह दौड़ते हुए बहन के घर पहुंचता है।
दहेज के लिए किडनी बेचने की बात कम ही रिलेट कर पाती है। वहीं सादिया का कम स्क्रीन स्पेस भी खलता है। समझ से परे यह भी रहा कि फिल्म का टाइटल ‘रक्षा बंधन’ है, लेकिन पूरी फिल्म दहेज कुप्रथा पर बात करती है।
रेटिंग- कुल मिलाकर ‘रक्षा बंधन’ में भाई-बहन का प्यार, इमोशन, अक्षय कुमार का कॉमेडी अंदाज दर्शकों को लुभाएगा। रक्षा बंधन त्योहार और 15 अगस्त की छुट्टी बॉक्स-ऑफिस रिजल्ट इसके प्लस पॉइंट भी है। खैर, सब कुछ देखते हुए इसे पांच में से तीन स्टार दिया जा सकता है।