देश में बायोडायवर्सिटी को कैसे बचाया जा सकता है? CSE डायरेक्टर सुनीता नारायण ने खास बातचीत में गिनाई वजहें

Updated on 31-12-2022 04:48 PM
दो हफ्ते की तीखी बहस के बाद भारत सहित 196 देशों ने जैव विविधता में होने वाले नुकसान को रोकने के लिए पिछले दिनों कुनमिंग मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क नाम के समझौते पर दस्तखत किए। इस समझौते में प्रकृति की रक्षा के लिए 23 लक्ष्य शामिल किए गए हैं। एक साथ 196 देशों का इस बात पर राजी होना वाकई बड़ी बात है कि 2030 तक पृथ्वी का 30 प्रतिशत हिस्सा प्रकृति के लिए संरक्षित किया जाएगा। इस समझौते से उत्साहित कुछ लोग इसे जैव विविधता का 'पेरिस मोमेंट' भी बता रहे हैं। हालांकि यह समझौता होना जितना अहम है, उतना ही मुश्किल है इस पर अमल। अगले सात सालों में संरक्षित क्षेत्र का अनुपात 30 फीसदी तक ले जाने के लिए सरकारों को अपनी नीतियों में कई तरह के ऐसे बदलाव करने पड़ेंगे, जो उनके लिए आसान तो बिलकुल नहीं हैं। फिर अमीर और विकसित देश राय देने में तो आगे रहते हैं लेकिन जब इसके लिए ठोस आर्थिक योगदान करने की बात आती है तो टालमटोल करने लगते हैं। इस समझौते के क्या मायने हैं और इसका भारत पर क्या असर पड़ेगा, इस बारे में पूनम गौड़ ने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की डायरेक्टर सुनीता नारायण से बात की। पेश हैं बातचीत के अहम अंश :


सवाल: जैव विविधता शिखर सम्मेलन क्या है और दुनिया के लिए इसका क्या महत्व है?
जवाब: कॉप-27 और कॉप-15 हाल ही में संपन्न हुए, पर दोनों के उद्देश्य अलग-अलग हैं। कॉप-27 जलवायु परिवर्तन को लेकर हुआ था, जबकि कॉप-15 जैव विविधता पर केंद्रित है। कन्वेंशन ऑन बायोडायवर्सिटी (सीबीडी) में भी अध्यक्ष बदलते रहते हैं। यहां हर दो साल बाद शिखर सम्मेलन आयोजित होता है। 2010 में सीबीडी के सदस्य राष्ट्र जैव विविधता को संरक्षित करने की कार्रवाई के लिए 10 साल की रूपरेखा पर सहमत हुए थे। फ्रेमवर्क ने 20 लक्ष्यों को 2020 तक पूरा करना तय किया था। इनमें वनों सहित प्राकृतिक जैव विविधता के नुकसान को कम करने, कृषि को लंबे समय तक जारी रखने और पर्यावरण संरक्षित करने से जुड़े लक्ष्य रखे गए थे। इन लक्ष्यों में से एक को भी पूरा नहीं किया जा सका, लेकिन वनों की कटाई को 2010 के स्तर से लगभग एक तिहाई तक कम करने में थोड़ी सफलता मिली है।
सवाल: दुनिया भर के इन देशों को इस तरह के समझौते की जरूरत क्यों पड़ रही है?
जवाब: दुनिया भर में दस लाख से अधिक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। 1970 और 2018 के बीच दुनिया में वन्यजीवों की आबादी करीब 69 प्रतिशत कम हुई है। मानव गतिविधियों ने जीवों के विलुप्त होने की प्रक्रिया को एक हजार गुणा से भी तेज कर दिया है। 2020 में एक रिपोर्ट आई थी जिससे पता चला कि दुनिया ने 150 साल में सभी कीट प्रजातियों में से पांच से 10 प्रतिशत प्रजातियां खो दी हैं। यह लगभग 250000 से 500000 प्रजातियों के बराबर है। कीटों का रहना काफी जरूरी है। कीट विश्व भर की फसलों के लगभग 75 प्रतिशत और जंगली पौधों में 80 प्रतिशत परागण के लिए जिम्मेदार हैं। खाद्य वस्तुओं की श्रृंखला बनाए रखने के लिए कीड़ों की जरूरत पड़ती है। कीड़े नहीं होने से पेड़-पौधों पर संकट आ जाएगा।

सवाल: आपने कहा कि पिछले समझौते के लक्ष्य कुछ खास पूरे नहीं हुए। अब यह समझौता हुआ है तो इससे क्या बदलाव आने की उम्मीद है?
जवाब: इस समझौते में 23 लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। इसमें हानिकारक कीटनाशकों के प्रयोग को कम करने से लेकर कंपनियों के लिए अपनी गतिविधियों में पर्यावरणीय जोखिमों की रिपोर्ट करना तक अनिवार्य किया गया है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि देशों को 2030 तक अपनी भूमि और समुद्री क्षेत्रों का 30 प्रतिशत हिस्सा संरक्षित करना है। 110 से अधिक देश पहले ही इस लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन अब तक वह इसमें विफल रहे हैं। इतना ही नहीं, दुनिया भर में दी जा रही उन सब्सिडी में सालाना 500 अरब डॉलर की कमी लाई जाएगी, जो पर्यावरण के लिहाज से नुकसानदेह है। जिन इलाकों का इकोसिस्टम खराब हो चुका है, ऐसे कम से कम 30 प्रतिशत इलाकों को फिर से दुरुस्त किया जाएगा।


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