जम्मू-कश्मीर में पहली बार ऐसे गैर-कश्मीरी भी वोट डाल सकेंगे, जो बाहरी प्रदेशों से आकर जम्मू-कश्मीर में अस्थायी तौर पर रह रहे हैं। इनमें प्रवासी कामगार, मजदूर, अन्य कर्मचारी शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इसकी घोषणा की है। इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची अपडेट होगी।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कहा कि भारत में जो वयस्क अस्थायी रूप से जहां रहता है, वहां वोट डाल सकता है। अनुच्छेद 370 लागू रहते स्थायी निवासी ही वोटर थे। अब स्थिति बदल गई है।
फारूक अब्दुल्ला ने बुलाई सर्वदलीय बैठक
अनुच्छेद
370 खत्म होने के ठीक 3 साल बाद इस घोषणा से विपक्षी पार्टियों में खलबली
मच गई है। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भाजपा पर जम्मू-कश्मीर को
‘प्रयोगशाला’ में बदलने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह फैसला कश्मीर
में लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील होगा। इस प्रक्रिया का मकसद स्थानीय
आबादी को शक्तिहीन करना है। इस बीच, नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक
अब्दुल्ला ने 22 अगस्त को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। इसमें आगे की रणनीति तय
होगी।
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने बताया खतरनाक
जम्मू-कश्मीर
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद लोन ने कहा कि यह खतरनाक है। मुझे नहीं पता
कि वे क्या हासिल करना चाहते हैं। 1987 को याद करें। हम अभी तक इससे बाहर
नहीं आए हैं। 1987 को न दोहराएं।
दूसरी तरफ, पूर्व मंत्री और अपनी पार्टी के नेता जीएच मीर ने कहा, अगर मतदाता अधिकार कानून दूसरे राज्यों में लागू होता है तो जम्मू-कश्मीर में भी लागू होगा। यदि इसे केवल जम्मू-कश्मीर में लागू किया जा रहा है, तो हम इसके खिलाफ लड़ेंगे। हालांकि अन्य नेताओं का कहना है कि नए मतदाता जोड़ने के मुद्दे को विपक्षी पार्टियां हौवा बना रही हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर की जनता ने भी इस फैसले का बचाव किया है।
स्थानीय नागरिक अमित रैना ने कहा कि मुफ्ती मोहम्मद सईद 1989 में यूपी के मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़े और जीतकर गृह मंत्री बने। दिल्ली में रहने वाले एक कश्मीरी ने कहा, मैं दिल्ली में हूं और दिल्ली में ही वोट करता हूं। मुझे सिर्फ एक जगह वोट डालने का अधिकार है। यदि कोई गैर कश्मीरी नागरिक पात्रता को पूरा करता है तो वह कश्मीर में भी मतदान कर सकता है।